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पहली और आखिरी मुलाकात

तुम्हें जाते हुए पहली बार देखा था। तुम बहुत दूर जा चुके थे। मुझे याद है जब तुमने कहा था कि मैं तुम्हें घर तक छोड़ देता हूँ रात काफी हो गयी है। मैंने कहा मैं अकेले चली जाऊंगी।  मेट्रो कार्ड टच किया ही था उसने फिर बोला तुम्हारे साथ मैं भी चलूँ? तुम अकेले कैसे जाओगी।  शाम के 7:30 बज रहे थे। मैंने उसे फिर समझाया क्योंकि मेरे मुताबिक समय ज्यादा नहीं हुआ था पर घर तक पहुँचने में एक घंटे से ज्यादा ही लगना था। मैं एस्कलेटर तक पहुँच चुकी थी। मैंने पीछे मुड़कर देखा तो उसकी नज़रे मुझे ढूंढते ढूंढते मुझ तक पहुँच ही गयी थी। वो मुझे तब तक देखता रहा जब तक मैं ओझल नहीं हुई।  मैं मेट्रो में चढ़ी ही थी 2 सेकंड बाद ही उसका मैसेज आता है। उसने लिखा अच्छा, मैं मेट्रो से अपने हॉस्टल जा रहा हूँ। मैंने कहा तुम अभी तक गए नहीं? हां बस निकल ही रहा था। तुम्हें अकेले नहीं जाने देना चाहिए मुझे भी साथ जाना चाहिए था।  वो अगली ही सुबह ट्रैन से घर जाने वाला था। इसलिए अचानक से बात हुई और अचानक से ही मुलाकात हुई। हम काफी देर तक पार्क में बैठकर बातें कर रहे थे। मेरे पास उससे बात करने के लिए सिर्फ ए...
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स्कूल का याराना

 जब भी कभी लोग कहते हैं कि शर्माओ मत, अरे अब बता भी दो, कितना टाइम लगाओगे, बहुत शर्माती हो तुम... इन सभी बातों से मुझे गुस्सा आता है क्योंकि अगर मैं शर्माती तो मैं खुद से किसी लड़के को प्रपोज कैसे करती भला... हां काफी हिम्मत चाहिये होती है ये सब कहने के लिए। कई लड़कों ने प्रपोज किया लेकिन वो बात उनमें नहीं थी जो बात मुझे उस में दिखी जिसे मैंने पसंद किया ... हां कभीकभी  यह सोच कर डर लगता कि उससे दूर जाना कितना मुश्किल होगा, क्योंकि पहले से ही तय कर लिया कि दूर होना ही है। इसमें कुछ नहीं किया जा सकता। यह जो लड़की शर्माती ना थी, नाक पर हमेशा गुस्सा भरा रहता था वो सोचने पर मजबूर हो गई की आखिर कमी कहां पर है मुझमें या उसमें।  पता है आज बहुत तेज सिर दर्द हो रहा है और जब भी सिर दर्द होता है ना तो मैं लिखना शुरू कर देती हूं। लिखने से आराम जो मिलता है तो सोचा कि आज अपनी ही कहानी लिख दी जाए। मेरी जिंदगी भी न जाने क्या क्या साबित करने में लगी है। किसी समय में स्कूल में सबसे डिसिप्लिन लड़की हुआ करती थी और आज खुद की जिंदगी में सब कुछ बिखरा हुआ है। डिसिप्लिन शब्द गायब है। अरे लड़...

"आंचल में है दूध और आंखों में है पानी" - महादेवी वर्मा

महादेवी वर्मा  मीरा के बाद हिंदी में महादेवी वर्मा सुभद्रा कुमारी चौहान ही अपने लिए स्थान में आती नजर आती हैं जिस समाज में स्त्रियों के लिए लिखना तो क्या पढ़ना भी वर्जित माना जाता था वहीं इन नारियों का योगदान क्रांतिकारी ही माना गया।  जहां एक तरफ सुभद्रा कुमारी चौहान तो ममता और वीरता के गीत लिखती रही वहीं दूसरी तरफ महादेवी वर्मा ने नारियों की पीड़ा को समझा उसे छैला और अपनी कलम के माध्यम से अभिव्यक्त भी किया।  एक समय ऐसा था जब नारी को अबला नारी समझा जाता था जिसके लिए एक वाक्य भी कहा गया है "अबला जीवन हाय तुम्हारी यही कहानी आंचल में है दूध और आंखों में है पानी" महादेवी वर्मा ने उस समय लिखी थी जब वह लेखन में नारी की स्थिति को लिख रही थी। आज भी स्त्री पुरुषों के लिए रोजमर्रा के जीवन में भोगी जाने वाली एक वस्तु है लेकिन कुछ हद तक स्त्रियों ने इन बंधनों को तोड़कर साबित किया है कि स्त्री बिना पुरूष के भी अपना जीवन बेहतर कर सकती है। आज महादेवी वर्मा का जन्मदिन है। भारतीय स्त्री की मुक्ति के संघर्ष को बिंबो में बांधते हुए महादेवी लिखती है- ‘‘बाँध लेंगे क्या तुझे यह ...

आई लाईक बिंग नियर द टॉप ऑफ ए माउंटेन , वन कांट गेट लॉस्ट हेयर - विस्लावा सिम्बोर्स्का

तुम गुमशुदगी से रिहा हुई या नहीं? रिहाई मुझे तुम्हारे ख्वाबों से मिली, गुमशुदगी से नहीं मैं पहाड़ियों की वादियों में गुम होना चाहती हूँ। गुम मैं कुछ इस तरह होना चाहती हूं खुद में कि अगर मैं वादियों में अपना नाम पुकारूं तो मुझे मेरी आवाज भी सुनाई न दे। तुम्हें मेरी आंखों में कुछ दिखाई दे रहा है? - तुम्हारी आंखों में तुम्हारी गुमशुदगी दिखाई दे रही है। ये तुम्हें आई फ्लू हो गया है क्या... तुम भी नहीं समझ पाए। मेरी बातें कोई समझ ही नहीं पाता है। तुम्हें पता है कि मेरे लिए तुम्हें पढ़ना बहुत मुश्किल होता है। तुम्हें पढ़ने के बाद मेरी हालत इतनी खराब हो जाती है कि किसी और को ये समझाना मुश्किल हो जाता है कि आखिर हुआ क्या है और देखो कोई समझ ही नहीं पाता। तुम्हें पढ़ने वाली ये आंखें लाल इसलिए है क्योंकि तुमने जो दर्द उकेरा है शब्दों में, उन्हें मेरी आंखों ने महसूस किया है। लेकिन मैंने तुम्हारी आंखों को मेरा लिखा पढ़ने का हक नहीं दिया। फिर क्यों तुम्हारी आंखें खुद में मुझे महसूस कर रही हैं। यही कारण है कि मैं पहाड़ों की वादियों में गुम हो जाना चाहती हूँ। जबकि इसके उल्ट विस्...

फ़िल्म स्वर्ग {1990 }

फिल्म में सिर्फ नौकर और मालिक की कहानी है। जिसे गोविंदा और राजेश खन्ना ने निभाया। मुख्य किरदार निभा रहे कृष्णा (गोविंदा) पर मि. कुमार (राजेश खन्ना) के छोटे भाई चोरी का इल्ज़ाम लगा देते हैं।कृष्णा को चोरी के आरोप में घर से बाहर निकाल दिया जाता है। कृष्णा उस स्वर्ग की दुनिया से बाहर निकल कर मुंबई जैसे बढ़े शहर में आता है और अपने पांव जमा लेता है और वापस अपने साहब जी को ढूंढता हुआ हवेली जाता है लेकिन तक तब स्वर्ग जैसी हवेली का बटंवारा हो चुका होता है। कहानी  के अंत में गोविंदा एक मंदिर में गरीब लोगों को दान कर रहा होता है। राजेश खन्ना भी गरीब लोगों की कतार में बैठा हुआ होता है जिसके बाद गोविंदा राजेश खन्ना को पहचान लेता है और उनसे वापस हवेली चलने के लिए कहता है। सब लोग हवेली पर वापस आजाते हैं। लेकिन राजेश खन्ना अपने छोटे भाईयों द्वारा की गयी हरक़तों को माफ न कर पाने पर अपने माँ को दिए गए वादे को याद करता है। यही सब याद करते करते राजेश खन्ना को हार्टअटैक आता है और वो मर जाता है। वैसे तो ये फ़िल्म सभी ने देखी होगी। इसमें नायक नायिका के न होने पर भी कहानी दमदार है।  ( जब तक घर क...

टूटे हुए फूल की महकती हुई खुशबू

उसने एक गहरी सांस ली और लिखना शुरू कर दिया। उसके लिखने में एक ऐसा दर्द था जो धूप कभी छांव की तरह कभी भी उखड़ जाता था। शाम ढलने को आई थी, सर्द हवाएं चलनी शुरू हो गई थी। लेकिन इन सर्द हवाओं से उसको कोई फर्क ही नहीं पड़ रहा था। जैसे सर्द हवाओं से उसका कोई पुराना नाता रहा हो। उसने हल्के गुलाबी रंग की शर्ट पहनी थी। उसमें वो एक महकता हुआ फूल लग रहा था। उसके आसपास मैं तितली की तरह मंडरा रही थी। उसके हाथ में टेब जिसमें वो कुछ लिख रहा था। मैं उसके पास  बैठी हुई थी। उसकी महकती हुई खुशबू मुझ तक कुछ इस कदर आ रही थी कि मैं उस खुशबू में खोई हुई थी। मैंने छुपके से उसके टेब में झांकने की कोशिश की और जानने की भी कोशिश की, कि आखिर क्या लिखा जा रहा है? और उसने झट से मेरी ओर देखकर कहा कि इस तरह से बिना पूछे किसी के टेब में ताका झांकी नहीं करनी चाहिए। मैंने भी मुह बनाते हुए  😏  उसकी तरफ से अपना चेहरा हटाकर बाई ओर घूमा लिया था। बाई ओर कुछ लोग लकड़ियां जलाकर खुद को सर्द हवाओं से बचा रहे थे। मैं जैसे ही उन जलती हुई लकड़ियों की तरफ बढ़ी। उसने कहा रूको... उसने जैसे ही कहा रुको धड़कने उसकी आवाज...

तुमने कभी चांद नहीं देखा

शिप्रा समर को अपने घर ले जाती है। दोनों घर पहुँचते हैं। शिप्रा घर पहुँचते ही सीधा अपने कमरे में चली जाती है। समर शिप्रा के घरवालों से नज़रें चुराकर शिप्रा के कमरे की तरफ जा रहा होता है। लेकिन शिप्रा की मम्मी समर को रोकती है और उसका हालचाल लेती है। समर बेटा कैसे हो? शिप्रा ने कहां कहां घुमाया तुम्हें? समर - आंटी जी क्या आप जानती थी कि मैं आया हूँ? शिप्रा की मम्मी - हां, शिप्रा ने बताया था कि तुम आ रहे हो। शिप्रा ने इस बार भी कुछ किया क्या ? समर - { जी आंटी जी उसको जो करना था कर दिखाया } अरे नहीं नहीं आंटी जी शिप्रा तो बहुत ही सीधी साधी लड़की है भला वो ऐसे कैसे कर सकती है। { समर मन ही मन शिप्रा की हरकतों पर नाराज़ होता है } शिप्रा के घर में समर की खातीरदारी के लिए सारा इतंजाम किया होता है लेकिन समर को शिप्रा का किया हुआ मजाक पसंद नहीं आता। रात को खाना खाने के बाद दोनों छत पर यादों का खज़ाना खोलकर बैठ जाते है। थोड़ी देर बाद शिप्रा की मम्मी भी छत पर आ जाती है और वह भी वही पुराना किस्सा छेड़ देती हैं। जिसकी वजह से समर को जाना पड़ा था। समर को वापस आकर अच्छा लगा। समर मन ही मन सोच र...