महादेवी वर्मा
मीरा के बाद हिंदी में महादेवी वर्मा सुभद्रा कुमारी चौहान ही अपने लिए स्थान में आती नजर आती हैं जिस समाज में स्त्रियों के लिए लिखना तो क्या पढ़ना भी वर्जित माना जाता था वहीं इन नारियों का योगदान क्रांतिकारी ही माना गया। जहां एक तरफ सुभद्रा कुमारी चौहान तो ममता और वीरता के गीत लिखती रही वहीं दूसरी तरफ महादेवी वर्मा ने नारियों की पीड़ा को समझा उसे छैला और अपनी कलम के माध्यम से अभिव्यक्त भी किया।
एक समय ऐसा था जब नारी को अबला नारी समझा जाता था जिसके लिए एक वाक्य भी कहा गया है "अबला जीवन हाय तुम्हारी यही कहानी आंचल में है दूध और आंखों में है पानी" महादेवी वर्मा ने उस समय लिखी थी जब वह लेखन में नारी की स्थिति को लिख रही थी।
आज भी स्त्री पुरुषों के लिए रोजमर्रा के जीवन में भोगी जाने वाली एक वस्तु है लेकिन कुछ हद तक स्त्रियों ने इन बंधनों को तोड़कर साबित किया है कि स्त्री बिना पुरूष के भी अपना जीवन बेहतर कर सकती है।
आज महादेवी वर्मा का जन्मदिन है।
भारतीय स्त्री की मुक्ति के संघर्ष को बिंबो में बांधते हुए महादेवी लिखती है-
‘‘बाँध लेंगे क्या तुझे यह मोम के बंधन सजीले?
पंथ की बाधा बनेंगे तितलियों के पर रंगीले?
विश्व का क्रंदन भुला देगी मधुप की मधुर गुन-गुन?
क्या डूबा देंगे तुझे यह फूल के दल ओस-गीले?
तू न अपनी छाँह को अपने लिए कारा बनाना
जाग तुझ को दूर जाना।’’ (सांध्यगीत)
कोमल कश्यप
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