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स्कूल का याराना



 जब भी कभी लोग कहते हैं कि शर्माओ मत, अरे अब बता भी दो, कितना टाइम लगाओगे, बहुत शर्माती हो तुम... इन सभी बातों से मुझे गुस्सा आता है क्योंकि अगर मैं शर्माती तो मैं खुद से किसी लड़के को प्रपोज कैसे करती भला... हां काफी हिम्मत चाहिये होती है ये सब कहने के लिए। कई लड़कों ने प्रपोज किया लेकिन वो बात उनमें नहीं थी जो बात मुझे उस में दिखी जिसे मैंने पसंद किया ... हां कभीकभी  यह सोच कर डर लगता कि उससे दूर जाना कितना मुश्किल होगा, क्योंकि पहले से ही तय कर लिया कि दूर होना ही है। इसमें कुछ नहीं किया जा सकता। यह जो लड़की शर्माती ना थी, नाक पर हमेशा गुस्सा भरा रहता था वो सोचने पर मजबूर हो गई की आखिर कमी कहां पर है मुझमें या उसमें।

 पता है आज बहुत तेज सिर दर्द हो रहा है और जब भी सिर दर्द होता है ना तो मैं लिखना शुरू कर देती हूं। लिखने से आराम जो मिलता है तो सोचा कि आज अपनी ही कहानी लिख दी जाए। मेरी जिंदगी भी न जाने क्या क्या साबित करने में लगी है।
किसी समय में स्कूल में सबसे डिसिप्लिन लड़की हुआ करती थी और आज खुद की जिंदगी में सब कुछ बिखरा हुआ है। डिसिप्लिन शब्द गायब है। अरे लड़की बस भी कर और कितना डिसिप्लिन में रहेगी। तुझे पता है न कि स्कूल फ्रैंड आज भी चिढ़ाते है। वो तब और हँसने लगे मुझ पर जब मैंने उनको अपना फ़ेसबुक दिखाया। दरअसल मैं उनसे काफी आगे हूँ। उनको आज भी फ़ेसबुक चलाने के लिए घर से परमिशन लेनी होती है इसलिए उन्होंने फ़ेसबुक पर अकाउंट ही नहीं बनाया। मैंने फ़ेसबुक की अपनी क्लिक की हुई फ़ोटो और कैप्शन को उन्हें दिखाया। उसने तुरंत मुझ से पूछा कि अच्छा ये बता इस फ़ोटो में क्या ख़ास बात है। मैंने कहा मुझे ये सब अच्छा लगता हैं। आजकल लोग ये सब पसन्द करते है। खैर फ़ेसबुक की दुनिया उनकी समझ से बाहर थी और मेरे पास कोई ऐसा जवाब नहीं था जिससे मैं उन्हें ये समझा पाती।

तुम्हें पंछी की तरह उड़ना था न अब जितनी ऊँचाई तक उड़ना चाहती हो उड़ सकती हो, लेकिन किस दिशा में उड़ना है ये भी तो समझाए कोई। वरना इस बार घर वापस लौट नहीं पाऊंगी।

कुछ दिनों पहले मैंने अपनी डायरी पढ़ी और उसमें मेरी नज़र पढ़ी दो स्टोरी पर जिसमें मैंने दोनों को ही "पहली गलती' लिख रखा है। पता नहीं कितनी बार मेरी पहली गलती होगी। वैसे तो बहुत बड़ी गलती थी कि बिना सर को बताये खुद से ही सब्जेक्ट चुन लिया था वो भी गलत सब्जेक्ट। बाद में सर ने काफी डांट लगाई थी कि एक बार कम से कम पूछ लिया होता... मैंने भी आँखों को झुका कर कहा सर आप मुझे एक महीने से कॉलेज में दिखे नहीं तो मुझे लगा था कि आपने कॉलेज छोड़ दिया है क्योंकि उसी साल एक प्रोफेसर ने उसी डिपार्टमेंट से रिजाइन दे दिया था।

अब सिर का दर्द काफी हल्का हो गया है। वैसे मेरी जिंदगी में सब कुछ मेरे मुताबिक चल रहा था। स्कूल, कॉलेज, करियर और फिर प्यार। करीयर तक तो सब ठीक था। लेकिन प्यार में जिसे मैंने चुना था उसने शायद मुझे नहीं चुना। मैंने प्यार का इज़हार तो कर दिया था लेकिन जवाब मैं "न" ही मिला। मैंने भी कई लड़को को न कहा है तो इस बार मुझे भी न सुनना ही था। ख़ैर लौट आते है फिर से स्कूल की ओर एक दोस्त से पूरे पांच साल बाद मिलना हो पाया या यूँ कहूँ कि कभी मिलने की कोशिश ही नहीं की। आगे निकलने की होड़ में पीछे देखना जरूरी नहीं समझा।

एक और मज़े की बात जो कुछ दिनों पहले ही पता चली। कुल मिलाकर चार लोगों का ग्रुप था। सब कुछ अच्छा खासा चल रहा था कि विलन की तरह एक और लड़की हमारे ग्रुप में ऐड हो गयी। मैं, निधि, रूही, श्वेता और मिष्ठी। मैं और श्वेता पढ़ना चाहते थे। जबकि निधि, रूही और मिष्ठी प्यार के इमोशनल ड्रामा में फसते चले गए और मैंने इन सबसे दूरी बनानी शुरू कर दी। श्वेता पढ़ने में इंटेलिजेंट थी तो हर वक़्त उसी के साथ रहती। श्वेता मेरी पढाई में काफी मदद करती थी। धीरे धीरे हमारी दोस्ती और गहरी होने लगी। एक ही बैंच पर साथ बैठा करते थे। दोस्ती इतनी गहरी कि जिस दिन श्वेता स्कूल न जाती टीचर भी मुझसे पूछती कोमल आज तुम यहाँ कैसे बैठी हो ओह्ह अच्छा आज श्वेता जो नहीं आयी। मैं भी ईगो को साथ लेकर घूमती थी। मैंने कहा कि श्वेता मेरी फ्रेंड नहीं है। पूरी क्लास मेरी तरफ हैरानी के साथ देख रही थी कि कोमल ने ये क्या कह दिया। उसके अगले दिन श्वेता इस बात से नाराज़ रही।

श्वेता से होती मेरी गहरी दोस्ती से निधि को जलन होती थी। ये बात मुझे कुछ दिन पहले ही मिष्ठी ने बताई। जब तक रूही हमारे ग्रुप में शामिल नहीं हुई थी तब तक हम सब अपनी खुशी परेशानी सब कुछ बांटते थे लेकिन अचानक रूही के आ जाने के बाद श्वेता को छोड़ कर किसी को कुछ समझाती भी थी तो कहते कि हमारी लाइफ में इंटरफेयर करने की जरूरत नहीं है। तब से लेकर बीते इन सात सालों में न मैंने कभी उन्हें कॉल किया और न ही मैसेज।

पता है आज श्वेता का फोन आया था कह रही थी कि कोमल तुझे ना नज़र लग जाती है नज़र का धागा बंध वाले या राशि की अंगूठी बन वाले। पता है तेरे बारे में सब क्या कहते है कि कोमल की लाइफ और करियर तो सेट है बहुत अच्छा कर रही है और आजकल घूमती भी बहुत है। मैंने उसे अपने सिर दर्द के बारे में बताया तो कहती ऐसा है ना शनि मन्दिर जाकर पहले नज़र का धागा बंधवा। मैंने कहा ठीक है बाबा बंधवाती हूँ।

और प्यारी बात ये कि श्वेता अब तक मेरी फिक्र करती हैं। श्वेता में तो मेरी जान बसती है। सेंडल से लेकर ड्रैस तक दोनों सेम टू सेम लेते थे। कुछ लोग तो हमें जुड़वा बहन कह देते थे और मुझे कहना पड़ता था कि मेरी कोई बहन नहीं है।

( कृप्या करके मुझे बख्स देना तुम सब... आज लिखने का बहुत मन था तो लिख दिया। माफी )

#कोमल

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