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Showing posts from March, 2019

स्कूल का याराना

 जब भी कभी लोग कहते हैं कि शर्माओ मत, अरे अब बता भी दो, कितना टाइम लगाओगे, बहुत शर्माती हो तुम... इन सभी बातों से मुझे गुस्सा आता है क्योंकि अगर मैं शर्माती तो मैं खुद से किसी लड़के को प्रपोज कैसे करती भला... हां काफी हिम्मत चाहिये होती है ये सब कहने के लिए। कई लड़कों ने प्रपोज किया लेकिन वो बात उनमें नहीं थी जो बात मुझे उस में दिखी जिसे मैंने पसंद किया ... हां कभीकभी  यह सोच कर डर लगता कि उससे दूर जाना कितना मुश्किल होगा, क्योंकि पहले से ही तय कर लिया कि दूर होना ही है। इसमें कुछ नहीं किया जा सकता। यह जो लड़की शर्माती ना थी, नाक पर हमेशा गुस्सा भरा रहता था वो सोचने पर मजबूर हो गई की आखिर कमी कहां पर है मुझमें या उसमें।  पता है आज बहुत तेज सिर दर्द हो रहा है और जब भी सिर दर्द होता है ना तो मैं लिखना शुरू कर देती हूं। लिखने से आराम जो मिलता है तो सोचा कि आज अपनी ही कहानी लिख दी जाए। मेरी जिंदगी भी न जाने क्या क्या साबित करने में लगी है। किसी समय में स्कूल में सबसे डिसिप्लिन लड़की हुआ करती थी और आज खुद की जिंदगी में सब कुछ बिखरा हुआ है। डिसिप्लिन शब्द गायब है। अरे लड़...

"आंचल में है दूध और आंखों में है पानी" - महादेवी वर्मा

महादेवी वर्मा  मीरा के बाद हिंदी में महादेवी वर्मा सुभद्रा कुमारी चौहान ही अपने लिए स्थान में आती नजर आती हैं जिस समाज में स्त्रियों के लिए लिखना तो क्या पढ़ना भी वर्जित माना जाता था वहीं इन नारियों का योगदान क्रांतिकारी ही माना गया।  जहां एक तरफ सुभद्रा कुमारी चौहान तो ममता और वीरता के गीत लिखती रही वहीं दूसरी तरफ महादेवी वर्मा ने नारियों की पीड़ा को समझा उसे छैला और अपनी कलम के माध्यम से अभिव्यक्त भी किया।  एक समय ऐसा था जब नारी को अबला नारी समझा जाता था जिसके लिए एक वाक्य भी कहा गया है "अबला जीवन हाय तुम्हारी यही कहानी आंचल में है दूध और आंखों में है पानी" महादेवी वर्मा ने उस समय लिखी थी जब वह लेखन में नारी की स्थिति को लिख रही थी। आज भी स्त्री पुरुषों के लिए रोजमर्रा के जीवन में भोगी जाने वाली एक वस्तु है लेकिन कुछ हद तक स्त्रियों ने इन बंधनों को तोड़कर साबित किया है कि स्त्री बिना पुरूष के भी अपना जीवन बेहतर कर सकती है। आज महादेवी वर्मा का जन्मदिन है। भारतीय स्त्री की मुक्ति के संघर्ष को बिंबो में बांधते हुए महादेवी लिखती है- ‘‘बाँध लेंगे क्या तुझे यह ...

आई लाईक बिंग नियर द टॉप ऑफ ए माउंटेन , वन कांट गेट लॉस्ट हेयर - विस्लावा सिम्बोर्स्का

तुम गुमशुदगी से रिहा हुई या नहीं? रिहाई मुझे तुम्हारे ख्वाबों से मिली, गुमशुदगी से नहीं मैं पहाड़ियों की वादियों में गुम होना चाहती हूँ। गुम मैं कुछ इस तरह होना चाहती हूं खुद में कि अगर मैं वादियों में अपना नाम पुकारूं तो मुझे मेरी आवाज भी सुनाई न दे। तुम्हें मेरी आंखों में कुछ दिखाई दे रहा है? - तुम्हारी आंखों में तुम्हारी गुमशुदगी दिखाई दे रही है। ये तुम्हें आई फ्लू हो गया है क्या... तुम भी नहीं समझ पाए। मेरी बातें कोई समझ ही नहीं पाता है। तुम्हें पता है कि मेरे लिए तुम्हें पढ़ना बहुत मुश्किल होता है। तुम्हें पढ़ने के बाद मेरी हालत इतनी खराब हो जाती है कि किसी और को ये समझाना मुश्किल हो जाता है कि आखिर हुआ क्या है और देखो कोई समझ ही नहीं पाता। तुम्हें पढ़ने वाली ये आंखें लाल इसलिए है क्योंकि तुमने जो दर्द उकेरा है शब्दों में, उन्हें मेरी आंखों ने महसूस किया है। लेकिन मैंने तुम्हारी आंखों को मेरा लिखा पढ़ने का हक नहीं दिया। फिर क्यों तुम्हारी आंखें खुद में मुझे महसूस कर रही हैं। यही कारण है कि मैं पहाड़ों की वादियों में गुम हो जाना चाहती हूँ। जबकि इसके उल्ट विस्...

फ़िल्म स्वर्ग {1990 }

फिल्म में सिर्फ नौकर और मालिक की कहानी है। जिसे गोविंदा और राजेश खन्ना ने निभाया। मुख्य किरदार निभा रहे कृष्णा (गोविंदा) पर मि. कुमार (राजेश खन्ना) के छोटे भाई चोरी का इल्ज़ाम लगा देते हैं।कृष्णा को चोरी के आरोप में घर से बाहर निकाल दिया जाता है। कृष्णा उस स्वर्ग की दुनिया से बाहर निकल कर मुंबई जैसे बढ़े शहर में आता है और अपने पांव जमा लेता है और वापस अपने साहब जी को ढूंढता हुआ हवेली जाता है लेकिन तक तब स्वर्ग जैसी हवेली का बटंवारा हो चुका होता है। कहानी  के अंत में गोविंदा एक मंदिर में गरीब लोगों को दान कर रहा होता है। राजेश खन्ना भी गरीब लोगों की कतार में बैठा हुआ होता है जिसके बाद गोविंदा राजेश खन्ना को पहचान लेता है और उनसे वापस हवेली चलने के लिए कहता है। सब लोग हवेली पर वापस आजाते हैं। लेकिन राजेश खन्ना अपने छोटे भाईयों द्वारा की गयी हरक़तों को माफ न कर पाने पर अपने माँ को दिए गए वादे को याद करता है। यही सब याद करते करते राजेश खन्ना को हार्टअटैक आता है और वो मर जाता है। वैसे तो ये फ़िल्म सभी ने देखी होगी। इसमें नायक नायिका के न होने पर भी कहानी दमदार है।  ( जब तक घर क...