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मेरी मनपसंद लेखिका मन्नू भंडारी


कल्पनाओं के बाजार में हर कोई जाता है लेकिन उस कल्पना में एक अच्छे नेता की कल्पना करना हर व्यक्ति के बस की बात नहीं।
मेरी भी एक छोटी सी कोशिश थी लेकिन नाकाम रहीं क्योंकि मैंने उस किरदार को कागज़ पर नहीं लिखा।
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तुम्हारी लिखी गज़ल जिसे मैं बार बार सुनती हूं, तब तक सुनती हूं जब तक नींद ना आ जाये। मेरी पसंदीदा गज़ल है। जगजीत सिंह की ग़ज़लों से भी ज्यादा सुनती हूं। अगर कोई सुनने की ख्वाहिश करता है और कहता है कि मुझे भी सुनाओ...लेकिन उन्हें कुछ सुनाई ही नहीं देता क्योंकि उसमें केवल तुम्हारा अहसास है जो केवल महसूस किया जा सकता है। इसी गज़ल को मैं बार बार सुनकर इतराती हूं, इसलिए घमंडी हूं। मैंने जिस किरदार की रचना की थी तुम उस किरदार से बिल्कुल अलग हो। तुम्हें कल्पनाओं के बाज़ार में खोजने की कोशिश की तभी मन्नू भंडारी की कहानी "मैं हार गई" याद आ गयी । उन्होंने अपनी कलम से दो काल्पनिक किरदारों को जन्म दिया था। वह कोशिश करती हैं कि एक आदर्शवादी नेता इस कलम के जरिए पैदा हो। पहले प्रयोग में वह एक निर्धन वर्ग में अपने आदर्श नायक को संकल्पित करती हैं। नेताजी जी जन्म एक निर्धन कृषक परिवार में होता है। वो एक ऐसे नेता का निर्माण करना चाहती थी जो प्रजा हितेषी, शोषण विरोधी, गरीबों के लिए काम करे, उसके पिता की मृत्यु होने के बाद, अंधी मां और बीमार बहन के लिए मजदूरी करने निकल पड़ता है। घर खर्च पूरा न हो पाने की वजह से वे चोरी करने लगता है। इस प्रकार तो यह एक अच्छा और आदर्श नेता कभी नहीं बन सकता।
मन्नू भंडारी सोचती हैं कि यदि आवश्यकताओं का अभाव ही न होता है, वह अमीर होता तो उसे चोरी नहीं करनी पड़ती। जिसके पास सभी सुख सुविधाएं मौजूद होती है। उसे अपनी आवश्यकताओं को पूरा करने का प्रयास नहीं करना पड़ता। दुसरा नेता अमीर परिवार में जन्म लेता है लेकिन लेखिका तब भी असफल होती है। वो अपनी कल्पनाओं में भी हार जाती हैं, लेकिन लिखने में सफल हो जाती हैं।
उसके बाद लिखने में ही नहीं अपने पूरे जीवन में सफल होती हैं और वो लेखिका मन्नू भंडारी हैं।
{13 जुलाई 2018}
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