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Showing posts from July, 2018

पंखुड़ी गुलाब की

अमृता ~ साहिल दस दिन से देख रही हूं तुम्हें... बड़ा घमंड आ गया है, एक दो कोड़ी की लड़की के लिए इतना घमंड... चार सालो से हूं तुम्हारे साथ। अच्छे से जानती हूं तुम्हें...और वो भी एक सड़क छाप एक्ट्रेस के लिए...तुम वहीं डिजर्व करते हो। साहिल ~ तुम भी ना अमृता जानती नहीं मुझे...तुम्हारी सारी कमजोरियों से वाखीफ़ हूं। तुम एक गुलाब हो और गुलाब की पंखुड़ियों को एक एक करके तोड़ना अच्छे से आता हैं। समझी... अब फोन रक्खो!! अमृता ~ जस्ट वेट एंड वॉच. साहिल ~ लिसेन मैडम तुमने भी तो उस... तुम्हारे पास है ही क्या? बस पापा का छोटा सा घर!! अब मुझे अपनी मंज़िल मिल गई है जिसको तुम दो कोड़ी का कह रही हो वो एक मशहूर एक्ट्रेस हैं उसके साथ मुझे नाम और शोहरत सब मिलेगा। जो अब तक पूरा नहीं हुआ अब वो सब पूरा हो जाएगा। अमृता ~ मैंने तुम्हारे साथ जो ख्वाबों बुने थे उनका क्या. साहिल ~ वो तुम्हारी परेशानी है मेरे सपने पूरे का वक़्त आ गया है। { नया दौर और रिश्तों का विकास } #Komal { यह वो गुलाब है जिसकी पंखुड़ियों को तोड़ने पर आपको भी चोट लग सकती है, फोटो वाला गुलाब स्टील का बना हैं।}

मेरी मनपसंद लेखिका मन्नू भंडारी

कल्पनाओं के बाजार में हर कोई जाता है लेकिन उस कल्पना में एक अच्छे नेता की कल्पना करना हर व्यक्ति के बस की बात नहीं। मेरी भी एक छोटी सी कोशिश थी लेकिन नाकाम रहीं क्योंकि मैंने उस किरदार को कागज़ पर नहीं लिखा। ~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~ तुम्हारी लिखी गज़ल जिसे मैं बार बार सुनती हूं, तब तक सुनती हूं जब तक नींद ना आ जाये। मेरी पसंदीदा गज़ल है। जगजीत सिंह की ग़ज़लों से भी ज्यादा सुनती हूं। अगर कोई सुनने की ख्वाहिश करता है और कहता है कि मुझे भी सुनाओ...लेकिन उन्हें कुछ सुनाई ही नहीं देता क्योंकि उसमें केवल तुम्हारा अहसास है जो केवल महसूस किया जा सकता है। इसी गज़ल को मैं बार बार सुनकर इतराती हूं, इसलिए घमंडी हूं। मैंने जिस किरदार की रचना की थी तुम उस किरदार से बिल्कुल अलग हो। तुम्हें कल्पनाओं के बाज़ार में खोजने की कोशिश की तभी मन्नू भंडारी की कहानी "मैं हार गई" याद आ गयी । उन्होंने अपनी कलम से दो काल्पनिक किरदारों को जन्म दिया था। वह कोशिश करती हैं कि एक आदर्शवादी नेता इस कलम के जरिए पैदा हो। पहले प्रयोग में वह एक निर्धन वर्ग में अपने आदर्श नायक को संकल्पित करती हैं। नेता...

वीरानी जगह

एक ऐसी जगह जहां कोई ना हो, एक बड़ा सा पेड़ हो, उस पर लकड़ियों से बना मेरा घर हो, आस पास अनानास, जामुन, लीची के पेड़ हो, गिलहरियां फुद- फुदाती हुई दौड़ रही हो, कठफोड़वाओं का पेड़ों की शाखाओं में ट्वी-ट्वी-ट्वी करना, थोड़ी ही दूर पर तालाब हो, जिसमें बत्तख, हंस, कछुआ, रंग - बिरंगी मछलियां हों। लेकिन जगह कभी वीरान ना हो। Komal Kashyap ___________________________________ ख़त्म होने को हैं अश्कों के ज़ख़ीरे भी 'जमाल'  रोए कब तक कोई इस शहर की वीरानी पर  ~जमाल एहसनी

बेफिक्री की हद्द

दीवाली के बाद आज घर से निकलना हुआ। वैसे तो घर से हर रोज़ ही निकलना होता हैं लेकिन आज ऐसा लगा जैसे अपने शहर से ही अंजान हूं। सुबह के करीब 10 बजे थे घर के सभी लोग दफ़्तर, स्कूल के लिए निकल गए थे मुझे भी काम से जाना था। अपना काम खुद करने की आदत नहीं रही। सुबह का समय था अधिकतर दुकानें खुली नहीं थीं जल्दी से स्टेशनरी शॉप ढूंढी, ग्लॉसी पेपर खरीदा और साइबर कैफे के लिए बरगद के पेड़ वाली गली जिसे बढ़ के चौक के नाम से जाना जाता है ये बरगद का पेड़ करीब १०० साल पुराना है। जब तक स्कूल जाते थे तब तक पूरा पहाड़ी घूम लिया करते थे आज वो गली भी बेहद शांत नज़र आ रही थी लेकिन आज से स्कूल खुल चुके है जब भी स्कूल के पास से गुजरते है तो क्लास में टीचर के डांटने की आवाज़ बाहर तक सुनाई देती हैं। लाइब्रेरियन लाइब्रेरी में बात करने पर सीधा गाल पकड़ कर खींच दिया करती थी। और सबसे अच्छी चीज वाली आंटी थी रिसेस की बेल बजते ही चीज़ वाली आंटी के पास बच्चो की भीड़ लग जाती थी आंटी उस समय लगभग 70 साल की रही होंगी। बच्चे रिसेस में चीज खरीदते थे और गैलरी में चिप्स, बिस्किट के रेपर फैक दिया करते थे या फिर डेस्क में ही छोड़...