
दीवाली के बाद आज घर से निकलना हुआ। वैसे तो घर से हर रोज़ ही निकलना होता हैं लेकिन आज ऐसा लगा जैसे अपने शहर से ही अंजान हूं। सुबह के करीब 10 बजे थे घर के सभी लोग दफ़्तर, स्कूल के लिए निकल गए थे मुझे भी काम से जाना था। अपना काम खुद करने की आदत नहीं रही। सुबह का समय था अधिकतर दुकानें खुली नहीं थीं जल्दी से स्टेशनरी शॉप ढूंढी, ग्लॉसी पेपर खरीदा और साइबर कैफे के लिए बरगद के पेड़ वाली गली जिसे बढ़ के चौक के नाम से जाना जाता है ये बरगद का पेड़ करीब १०० साल पुराना है। जब तक स्कूल जाते थे तब तक पूरा पहाड़ी घूम लिया करते थे आज वो गली भी बेहद शांत नज़र आ रही थी लेकिन आज से स्कूल खुल चुके है जब भी स्कूल के पास से गुजरते है तो क्लास में टीचर के डांटने की आवाज़ बाहर तक सुनाई देती हैं। लाइब्रेरियन लाइब्रेरी में बात करने पर सीधा गाल पकड़ कर खींच दिया करती थी। और सबसे अच्छी चीज वाली आंटी थी रिसेस की बेल बजते ही चीज़ वाली आंटी के पास बच्चो की भीड़ लग जाती थी आंटी उस समय लगभग 70 साल की रही होंगी। बच्चे रिसेस में चीज खरीदते थे और गैलरी में चिप्स, बिस्किट के रेपर फैक दिया करते थे या फिर डेस्क में ही छोड़ दिया करते थे आंटी बहुत बुजुर्ग थी उम्र ज्यादा होने की वजह से थोड़ा झुक कर चला करती थी प्रिंसिपल उन्हें हमेशा कहा करती थी कि कल से आप स्कूल में दुकान नहीं लगाएंगी बच्चे कूड़ा क्लास रूम में ही छोड़ देते हैं आंटी प्रिंसिपल से माफी मांगती थी कहती थी कि मेरी रोज़ी रोटी यही से चलती है आप कहें तो क्लास रूम से कूड़ा मैं साफ कर दिया करूंगी। मुझे स्कूल पास किए 4 साल हो गए है कुछ टीचर्स इतने डरावने है कि बच्चे उनसे आज भी डरते हैं। खैर आज की सैर अच्छी रही पूरा स्कूल घूम लिया और यादें ताज़ा हो गई।
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