
शिप्रा - यही बात तो तुम नहीं समझ रहे हो कि ये सब स्कूल की बातें है। हमने जो भी उस समय किया वो बचपना था और मेरी बात ध्यान से सुनो घर पर किसी की बातों का बुरा मत मानना। मैं ये सब ज्यादा देर तक संभाल नहीं पाउंगी।
(बातें करते करते दोनों अजमल खान पार्क तक पहुंचते है)
समर - लीजिये मैडम पहुँच गए अपने पुराने अड्डे पर।
शिप्रा -समर वैसे बुरा मत मानना ये सब कुछ आम हो गया है।
समर - तुम क्या समझाना चाहती हो?
शिप्रा - मेरी इस फिल्ड में न जाने कितने लोगों से मुलाकात होती है। मिलना मिलाना कोई बड़ी बात नहीं।
समर - तुम इतना बदल गई होगी ये मैनें कभी नहीं सोचा था। अब मैं तुम्हारे लिए आम हो गया हुं। तुमने कॉलेज में यहीं सीखा है।
शिप्रा - समर तुम गलत मत समझो लेकिन ये सच है।
समर - शिप्रा अपना हाथ दिखाना।
शिप्रा - तुम एसट्रोलॉजर कब से बन गये ( शिप्रा हंसते हुए )
समर - तुम हाथ दिखाओ तो सही ( समर ने शिप्रा का हाथ अपनी ओर खिंच लिया )
शिप्रा - क्या ढूंढ रहे हो मेरे हाथ में।
समर - तुम्हारा हाथ दीवाली पर जल गया था ना बस देख रहा था कि अब कैसा है।
शिप्रा - मेरा हाथ 8th क्लास में जला था समर। बस हल्का से निशान रह गया। इस बात को बहुत साल हो गए हैं।
समर - तुम उस समय आतकंवादी बनने की ट्रेनिंग जो ले रही थी। (हंसते हुए ) तुम्हारे अंदर बचत करने का कीड़ा इतना ज्यादा है कि तुम्हें खुद उससे नुकसान पहुंचता है। पूरे एक महीने तक पेन नहीं पकड़ पायी थी तुम। तुम्हारी फ्रैंड कहा है जिसने पूरा एक महीना तुम्हारा क्लासवर्क और होमवर्क दोनों किया था।
शिप्रा - होगी यहीं कही दिल्ली में।
समर - मतलब तुम्हें नहीं पता कि वो कहां रहती हैं।
शिप्रा - यार मेरी किसी से पटती नहीं। वो कई बार घर आयी लेकिन मैं उस टाइम कॉलेज में होती थी मिल ही नहीं पाते थे। फिर उसने घर आना छोड़ दिया। समझो एक साल में एक बार किसी फेस्टिवल पर वॉट्सअप कर देती है।
समर - वो देखो गेंदे का फूल ( चिड़ाते हुए )
शिप्रा - तुम्हें मुझे मेरी औकात बार बार याद दिलाने की जरुरत नहीं है।
समर - तुम्हें अभी भी गेंदे का फूल पसंद है।
शिप्रा - गेंदे के हार से हुई वो मेरी पहली कमाई थी। और कोई भी काम बड़ा छोटा नहीं होती। बशर्त की हम उसे कितना अच्छे से कर पाते है। पता है न समर टीचर कहा करते थे अगर हमें एक दिन में सिर्फ दस रुपये कमाने के लिए दिए जाए तो हम नहीं कमा पाएंगे। लेकिन मैंने उन गेंदे के फूल से पूरे हज़ार रूपए कमाए थे। मेरी जिंदगी की पहली तनख्वाह वही है।
समर - मैं चेक कर रहा था कि तुम क्या क्या भूल गयी हो। थैंक गॉड तुम्हें ये तो याद है कि तुमने कभी फूल बेचे थे।
शिप्रा - भला अपनी औकात कौन भूल सकता है। ये दुनिया बहुत ही ज़ालिम है।
समर - तुम सत्यवादी हरिश्चंद्र बनती होंगी। इसलिए तुम्हें ये दुनिया ज़ालिम नज़र आती है। तुम्हें गांधी बनने की जरूरत नहीं है।
शिप्रा - मैं अपना ईमान नहीं बेच सकती। हां लेकिन गांधी की तरह अपना दूसरा गाल कभी आगे नहीं करूँगी। शाम हो गयी है तुम कहा रुकने वाले हो।
समर - सोचा था कि तुम्हारे घर ही रुकूँगा, लेकिन तुमने तो आंटी जी को बताया भी नहीं कि मैं आया हूँ।
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