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2009 का पंद्रह अगस्त

आज जब प्रधानमंत्री लाल किले पर भाषण देने के बाद बच्चों के बीच जाते है तो एक अलग ही फीलिंग आती है। फिर चाहे व्यक्ति कितना ही आलोचक क्यों न हो। इसी तरह 2009 में मुझे भी लालकिले में इसी तरह जाने का मौका मिला था लेकिन वहा बैठे सभी बच्चें बोर हो जाया करते थे। बच्चों को भाषण सुनने की आदत जो नहीं होती। वहां पर अपनी गर्दन तक हिला नहीं सकते थे क्योंकि जो आकृति बनाई जा रही थी वो गड़बड़ा जाती थी। पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह भाषण दे ही रहे थे कि तेज बारिश आ गई सबको पहले ही अम्ब्रेला और रैनकॉट सरकार की तरफ से बांट दिये गये थे। जब बारिश आई तो सभी बच्चे अपना अम्ब्रेला खोलने लगे जिन भी लोगों की वहा ड्यूटी लगी हुई थी बच्चों को डांटने फटकारने में कोई कसर नहीं छोड़ते थे। यहां तक का पानी भी नहीं पी सकते थे क्योंकि हिलना मना था। कड़ी धूप में बैठना मुश्किल हो जाता था। इस साल भारत बनाया गया। वैसे तो हर साल ही कुछ न कुछ नया बनाया जाता है। मेरे समय में इंडिया गेट बनाया गया। इसकी ट्रेनिंग के लिए करीब 15 दिन तक सुबह 4 बजे उठकर लालकिले जाना होता था। लालकिले पर देशभक्ति के गाने की प्रेक्टिस करके 10 बजे तक घर वापस आ जाते थे। जो भी था मजेदार था। लेकिन उस समय न ही पीएम इस तरह बच्चों के बीच जाया करते थे। और न ही फोटो खिंचवाते थे। 15 अगस्त को कार्यक्रम समापन के बाद कुछ फोटो पत्रकारों ने हमारी तस्विरें खीची लेकिन पता नहीं कौन से अखबार में छपी थी।


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