नन्हें क़दम
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तुम सिर्फ चलती रहो, चलती रहो
कभी मत रुकना
चाहे कितनी ही अर्चने आ जाए
सिर्फ और सिर्फ आगे बढ़ती रहना
तुम्हारे यह नन्हें नन्हें कदम
तुम्हारे माता पिता को हौसला देते हैं।
और हमें निराशा की ओर धकेल देते हैं।
तुम्हारे हाथ में बर्तन की जगह
किताब होने चाहिए थी,
लेकिन तुमने सीख लिया हैं
अपनी मजबूरियों में जीना
तुम्हारे बिखरे बालों से
तुम्हारी मासूमियत और बढ़ जाती है।
तुम्हारा यह नंगे पांव चलना
तुम्हें कंकड़- कांटो में,
बंजर ज़मीन पर
जीना सीखा रहा है।
कभी मत रुकना
चाहे कितनी ही अर्चने आ जाए
सिर्फ और सिर्फ आगे बढ़ती रहना
तुम्हारे यह नन्हें नन्हें कदम
तुम्हारे माता पिता को हौसला देते हैं।
और हमें निराशा की ओर धकेल देते हैं।
तुम्हारे हाथ में बर्तन की जगह
किताब होने चाहिए थी,
लेकिन तुमने सीख लिया हैं
अपनी मजबूरियों में जीना
तुम्हारे बिखरे बालों से
तुम्हारी मासूमियत और बढ़ जाती है।
तुम्हारा यह नंगे पांव चलना
तुम्हें कंकड़- कांटो में,
बंजर ज़मीन पर
जीना सीखा रहा है।
©कोमल कश्यप
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