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Showing posts from January, 2019

टूटे हुए फूल की महकती हुई खुशबू

उसने एक गहरी सांस ली और लिखना शुरू कर दिया। उसके लिखने में एक ऐसा दर्द था जो धूप कभी छांव की तरह कभी भी उखड़ जाता था। शाम ढलने को आई थी, सर्द हवाएं चलनी शुरू हो गई थी। लेकिन इन सर्द हवाओं से उसको कोई फर्क ही नहीं पड़ रहा था। जैसे सर्द हवाओं से उसका कोई पुराना नाता रहा हो। उसने हल्के गुलाबी रंग की शर्ट पहनी थी। उसमें वो एक महकता हुआ फूल लग रहा था। उसके आसपास मैं तितली की तरह मंडरा रही थी। उसके हाथ में टेब जिसमें वो कुछ लिख रहा था। मैं उसके पास  बैठी हुई थी। उसकी महकती हुई खुशबू मुझ तक कुछ इस कदर आ रही थी कि मैं उस खुशबू में खोई हुई थी। मैंने छुपके से उसके टेब में झांकने की कोशिश की और जानने की भी कोशिश की, कि आखिर क्या लिखा जा रहा है? और उसने झट से मेरी ओर देखकर कहा कि इस तरह से बिना पूछे किसी के टेब में ताका झांकी नहीं करनी चाहिए। मैंने भी मुह बनाते हुए  😏  उसकी तरफ से अपना चेहरा हटाकर बाई ओर घूमा लिया था। बाई ओर कुछ लोग लकड़ियां जलाकर खुद को सर्द हवाओं से बचा रहे थे। मैं जैसे ही उन जलती हुई लकड़ियों की तरफ बढ़ी। उसने कहा रूको... उसने जैसे ही कहा रुको धड़कने उसकी आवाज...